अभी मौजूद है इस गाँव की मिट्टी में ख़ुद्दारी<ref>आत्म-सम्मान</ref>
अभी बेवा<ref>विधवा</ref>की ग़ैरत<ref>सम्मान</ref>से महाजन हार जाता है
मेरा ख़ुलूस<ref>प्रेम</ref>तो पूरब<ref>पूर्व</ref>के गाँव जैसा है
सुलूक<ref>व्यवहार</ref>दुनिया का सौतेली माँओं जैसा है
मालूम नहीं कैसी ज़रूरत निकल आई
सर खोले हुए घर से शराफ़त निकल आई
वो जा रहा है घर से जनाज़ा <ref>शव यात्रा</ref>बुज़ुर्ग का
आँगन में इक दरख़्त<ref>वृक्ष</ref>पुराना नहीं रहा
शब्दार्थ
<references/>