घर-घर
खेलती हैं लडकियाँ
पतियों की सलामती के लिए
रखती हैं व्रत
दीवारों पर
रचती हैं साझी
और एक दिन
साझी की तरह लडकियाँ भी
सिरा दी जाती हैं
नदियों में
आख़िर
लडकियाँ
कब सोचना शुरू करेंगी
अपने बारे में ...
घर-घर
खेलती हैं लडकियाँ
पतियों की सलामती के लिए
रखती हैं व्रत
दीवारों पर
रचती हैं साझी
और एक दिन
साझी की तरह लडकियाँ भी
सिरा दी जाती हैं
नदियों में
आख़िर
लडकियाँ
कब सोचना शुरू करेंगी
अपने बारे में ...