Last modified on 30 नवम्बर 2009, at 09:07

पिता-1 / चंद्र रेखा ढडवाल


 पिता (एक)

पिता! मेरे कंधों पर
सुर्ख़ाब के पर रख दो
मैं छू लेना चाहता हूँ
पहाड़ों की नर्म धूप
मेरे पैरों में किश्तियाँ बाँध दो
मैं पा लेना चाहता हूँ
सात समंदर पार के
नीलम देश की राजकन्या
मेरी हथेलियों पर बो दो सरसों के बीज
जो रातों-रात भरी-भरी फलियों से लदी
पौध हो जाएँ.