फिर भी न मुझे देना बिसार!
गिर जाऊँ आँखों से यदि मैं अस्ताचलगामी रवि-समान,
मूर्च्छित हो सान्ध्य कमल-सा जब आँसू जल का जलजात-गान,
पतझर की पीली पत्ती-सी प्रतिध्वनि न साथ ले मधु बयार,
फिर भी न मुझे देना बिसार!
जब अर्द्धरात्रि की गूँज, चाँदनी की माया, दे मुझे भुला;
तारे न दिलावें याद तुम्हें मेरी, न सुबह का फ़लक धुला;
मिल जायँ धूल में फूल सुप्त सुधि-दीपक के झर निराधार,
फिर भी न मुझे देना बिसार!
जब अंतिम बार उमड़ उर में कुहरे-सा कुछ हो जाय लीन,
झर अंतिम आँसू सूख चुकें जब--पथ में जैसे ओस दीन,
हो नया दिवस, हो जाय निशा-सी मेरी वीणा छिन्नतार,
फिर भी न मुझे देना बिसार!