Last modified on 30 नवम्बर 2009, at 21:44

इन्दु से / नरेन्द्र शर्मा

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:44, 30 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र शर्मा |संग्रह=मिट्टी और फूल / नरेन्द्र …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मेरे हृदय!
रख दिया नभ शून्य में किसने तुम्हें,
मेरे हृदय!
इन्दु कहलाते,
सुधा से विश्व नहलाते,
पर न पहचाना तुम्हें जग ने अभी,
मेरे हृदय!
कौन ज्वाला है,
हृदय में जिसे पाला है?
कौन विष पीकर सुधा-सीकर किया,
मेरे हृदय!
जलोगे कब तक?
कहा क्या? स्नेह है जब तक!
रात कितनी और हृ--सोचा कभी,
मेरे हृदय!
बहुत कुछ भोगा,
कभी तो अन्त भी होगा!
यान प्राण; उसाँस-मृग वाहन बने,
मेरे हृदय!
रख दिया नभ शून्य में किसने तुम्हें,
मेरे हृदय!