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मन से / नरेन्द्र शर्मा

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अब पत्थर बन जा, मन मेरे!—
जिससे तुझको घन और हथौड़ा ही तोड़े!
खन खन का लगना, जी दुखना छूटे,
तू भी अपना रोना-धोना छोड़े!

क्या बने काँच का पैमाना--
जिसको कोई भी चाहे जब तोड़े-फोड़े!
बन जा कठोर—जिससे न कभी
फिर तू कठोर इस दुनिया से, मन, मुँह मोड़े!

जब वक्त आयगा, दुःख जायगा—
भरने दे इनको, फूटेंगे ये तेरे दुखते फोड़े!
तू ख़ाक फ़ाँक दिल ताजा कर
ज्यों लोट रेत में हो ताज़ा उठते घोड़े!