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रात / नरेन्द्र शर्मा

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ओ जगमगाती रात!
इस अपरिमित मौन में (मधुमर्म के) ओ गान गाती रात!
ओ जगमगाती रात!
बताओ किस भेद से गंभीर हो तुम?
क्या सदा से ही अविचलित धीर हो तुम?
आँसुओं की ओस कैसे छिपाती हो?
यह मुझे भी बताओ, ओ तारकों में मुस्कुरती रात!
ओ जगमगाती रात!
बाट किसकी जोहती हो, असितवसना?
मुसकान मन की कौन है, हे कुंददशना?
कौन उनमें आँख का तारा तुम्हारा?
बताओ, ओ पायलों की गूँज वाली स्तब्ध आधी रात!
ओ जगमगाती रात!
विवश हो दो हृदय क्योंकर पास आते?
एक हो दो हृदय क्यों फिर बिछुड़ जाते?
क्या न वह फिर पास आते? सच बताओ,
ओ वियोगी हृदय के सुनसान में नगरी बसाती रात!
ओ जगमगाती रात!