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तुम्हारा मिलन / माखनलाल चतुर्वेदी

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तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई!
भूलती-सी जवानी नई हो उठी,
भूलती-सी कहानी नई हो उठी,
जिस दिवस प्राण में नेह-बंशी बजी,
बालपन की रवानी नई हो उठी;
कि रसहीन सारे बरस रसभरे हो गये—
जब तुम्हारी छटा भा गई।
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई!
घनों में मधुर स्वर्ण-रेखा मिली
नयन ने नयन रूप देखा, मिली—
पुतलियों में डुबा निज नजर की कलम
नेह के पृष्ठ को चित्रलेखा मिली;
बीतते-से दिवस लौट कर आ गये
बालपन ले जवानी सँभल आ गई।
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई!
तुम मिले तो प्रणय पर छटा छा गई!
चुम्बनों, साँवली-सी घटा छा गई,
एक युग, एक दिन, एक पल, एक क्षण
पर गगन से उतर चंचला, आ गई!
प्राण का दान दे, दान में प्राण ले,
अर्चना की अधर चाँदनी छा गई।
तुम मिले, प्राण में रागिनी छा गई!

रचनाकाल: सत्यनारायण कुटीर, प्रयाग-१९४४