Last modified on 14 दिसम्बर 2009, at 15:04

तेरा पता / माखनलाल चतुर्वेदी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 14 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी |संग्रह=समर्पण / माखनलाल चतु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरा पता सुना था उन दुखियों की चीत्कारों में,
तुझे खेलते देखा था, पगलों की मनुहारों में,
अरे मृदुलता की नौका के माँझी, कैसे भूला,
मीठे सपने देख रहा काग़ज की पतवारों में?
सागर ने खोला सदियों से,
देख बधिक का द्वार,
रे अन्तरतम के स्वामी उठ, तेरी हुई पुकार।

रचनाकाल: खण्डवा-१९२६