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दूर या पास / माखनलाल चतुर्वेदी

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यौवन के छल की तरह दूर, कलिका से फल की तरह दूर,
सीपी की खुली पंखुड़ियों से, स्वाती के जल की तरह दूर,
ताड़ित तरंग की तरह पास, अधकटे अंग की तरह पास,
उल्लास-श्वास की तरह? नहीं, पागल उलास की तरह पास,
मत रहे नजर की तरह की दूर,
रहे अरे पलक की तरह पास,
मत रह तारों की तरह दूर, ठुकरा तर्जनि की तरह पास।

रचनाकाल: खण्डवा-१९२६