चरण चलें, ईमान अचल हो!
जब बलि रक्त-बिन्दु-निधि माँगे
पीछे पलक, शीश कर आगे
सौ-सौ युग अँगुली पर जागे
चुम्बन सूली को अनुरागे,
जय काश्मीर हमारा बल हो,
चरण चलें, ईमान अचल हो।
स्मरण वरण का हिमगिरि का रथ,
तुम्हें पुकार रहा सागर-पथ,
अणु से कहो, अमर है निर्भय,
बोल मूर्ख, मानवता की जय,
झण्डा है नेपाल, सबल हो,
चरण चलें, ईमान अचल हो।
अन्न और असि दो से न्यारा
गर्वित है भूदान हमारा
सुन उस पंथी की स्वर धारा
जिसने भारतवर्ष सँवारा
’गोली’--राजघाट का बल हो,
चरण चलें, ईमान अचल हो।
बलि-कृति-कला ’त्रिवेणी’ की छबि,
गूँथ रहा, अपनी किरणों रबि
उठती तरुणाई का वैभव,
उतरे, बने सन्त, योद्धा, कवि।
भारत! लोक अमर उज्जवल हो,
चरण चलें, ईमान अचल हो!
रचनाकाल: खण्डवा-१९५०