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सुन पहाड़ / नवनीत शर्मा

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उनके यहां
तुम्‍हारा कई कुछ दर्ज है।
दहलना है
तुम्‍हें दरकते देखना।
कचरा बना कहानी रोज की।
तुम्‍हारी सुबकियों से धुली कुल्‍हाडि़यां
सिरों से निकली सड़कें
और तुम सिर्फ सिहरते हो।
वे आते हैं
तुम्‍हें ऐशगाह बना कर
लौट जाते हैं
वे बेचते हैं तुम्‍हारी मजबूरी
और तुम खड़े रहते हो
' हां हुजूर ऐसा ही हुआ'
की मुद्रा में।
सूखी हुई नदियों के बीच
कौन ढूंढ़े चुल्‍लू भर पानी
तुमसे पूछा जाना चाहिए
क्‍यों खामोश रहे
तुम्‍हारे चाय बागान
जब आधी रात को
एक विदेशी किशोरी को
मिल रही थी
सजा हंस कर बोलने की।