Last modified on 20 दिसम्बर 2009, at 01:10

प्रथम प्रभात / जयशंकर प्रसाद

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:10, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण

मनोवृत्तियाँ खग-कुल-सी थी सो रही,
अन्तःकरण नवीन मनोहर नीड़ में
नील गगन-सा शान्त हृदय भी हो रहा,
बाह्य आन्तरिक प्रकृति सभी सोती रही

स्पन्दन-हीन नवीन मुकुल-मन तृष्ट था
अपने ही प्रच्छन्न विमल मकरन्द से
अहा! अचानक किस मलयानिल ने तभी,
(फूलों के सौरभ से पूरा लदा हुआ)-

आते ही कर स्पर्श गुदगुदाया हमें,
खूली आँख, आनन्द-हृदय दिखला दिया
मनोवेग मधुकर-सा फिर तो गूँजके,
मधुर-मधुर स्वर्गीय गान गाने लगा

वर्षा होने लगी कुसुम-मकरन्द की,
प्राण-पपीहा बोल उठा आनन्द में,
कैसी छवि ने बाल अरुण सी प्रकट हो,
शून्य हृदय को नवल राग-रंजित किया

सद्यःस्नात हुआ फिर प्रेम-सुतीर्थ में,
मन पवित्र उत्साहपूर्ण भी हो गया,
विश्व विमल आनन्द भवन-सा बन रहा
मेरे जीवन का वह प्रथम प्रभात था