Last modified on 21 दिसम्बर 2009, at 22:06

भीतर ही / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:06, 21 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


भीतर ही
कुछ टूटा भी
तो भीतर ही
लहुलुहान अगर हुई भी तो भीतर ही
घर की खिड़कियों
दरवाज़ों के
रहे सब काँच
साबुत ही
फिर कैसा
मान-मनोव्वल
दुख भी क्योंकर