अनुभूति और एकान्त ने
एक-दूसरे से
इतनी बार
इतनी बातें की थीं...
कि उनके बीच
एक थरथराता पुल बन गया
गोकि शब्द
उसके ऊपर होकर नहीं गुज़रा...
गोकि एक सोच, एक सम्वेदना
उस थरथराते पुल के नीचे
हरहराती रहे बरसों...!
अनुभूति और एकान्त ने
एक-दूसरे से
इतनी बार
इतनी बातें की थीं...
कि उनके बीच
एक थरथराता पुल बन गया
गोकि शब्द
उसके ऊपर होकर नहीं गुज़रा...
गोकि एक सोच, एक सम्वेदना
उस थरथराते पुल के नीचे
हरहराती रहे बरसों...!