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चश्मा / मोहन राणा

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कभी कभी लगाता हूँ

पर खुद को नहीं

औरों को देखने के लिए लगाता हूँ चश्मा,

कि देखूँ मैं कैसा लगता हूँ उनकी आँखों में

उनकी चुप्पी में,

कि याद आ जाए तो उन्हें आत्मलीन क्षणों में मेरी भी

आइने में अपने को देखते,

मुस्कराहट के छोर पर.



2.12.2005