Last modified on 26 दिसम्बर 2009, at 22:09

हमसफ़र / रमा द्विवेदी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:09, 26 दिसम्बर 2009 का अवतरण (हमसफ़र/ रमा द्विवेदी का नाम बदलकर हमसफ़र / रमा द्विवेदी कर दिया गया है)


ज़िन्दगी के लंबे सफ़र में,
कोई मनचाहा हमसफ़र मिल जाए।

मौसम कोई भी हो,बंधन कैसे भी हों,
लाख समझाने पर भी,
मन कुछ दूर साथ-साथ,
चलने के लिए कसमसाए.....।

कुछ पल का ही साथ क्यों न सही,
दिल खुशियों से उमड़-उमड़ आए,
क्या दायित्वों के बोझ से कोई,
अपनी क्षणिक खुशियों को छोड़ आए....।

क्या इंसान का संबंधों के सिवा अपना अस्तित्व नहीं?
एक क्षण भी अपनी खुशी से जीने का हक़ नहीं?
दायित्वों की बलिवेदी पर,क्यों?
अपनी छोटी-छोटी खुशियों की बलि चढाए.....।

माना कि संबंधों के लिए जीना आदर्श है,मिसाल है,
किन्तु एक प्रश्न मेरे ज़ेहन में उमड़ता है,पूछ्ता है,
फिर इंसान स्वयं में क्या है?
मेरे प्रश्न का उत्तर कोई तो बताए.....?