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दिल है उसी के पास,हैं साँसें उसी के पास /गोविन्द गुलशन

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ग़ज़ल दिल है उसी के पास,हैं साँसें उसी के पास देखा उसे तो रह गईं आँखें उसी के पास

बुझने से जिस चराग़ ने इन्कार कर दिया चक्कर लगा रही हैं हवाएँ उसी के पास

मज़हब का नाम दीजिए या कोई और नाम सब जा रही हैं दोस्तो राहें उसी के पास

वो दूर तो बहुत है मगर इसके बावजूद गुज़री हैं फ़ुर्क़तों की भी रातें उसी के पास

उसको पता नहीं है वफ़ा क्या है,क्या जफ़ा हम छोड़ आए दिल की किताबें उसी के पास