कौन तुम!
मेरे संगीत कुञ्ज में तार सी मृदु झंकार,
निशब्द बन कर अमृत रस छलकाती हो,
मेरे हृदय पटल पर, सुंदर चित्र सी बन,
स्वर्गिक आनंद बरसा, स्वप्न पुष्प खिलाती हो.
कौन तुम! अप्सरा सी! चाह का छलावा दे,
मेरे कोमल द्रवित मन में, मधुर व्यथा भर जाती हो.
कौन तुम!