Last modified on 23 जनवरी 2010, at 23:57

उपरान्त / रंजना जायसवाल

पूजा जैन (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:57, 23 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना जायसवाल |संग्रह=मछलियाँ देखती हैं सपने / …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गेहूँ की तरह
उगाई जाती है
काटी जाती है
पीसी जाती है
बेली जाती है
सेंकी जाती है

और तीन-चार
निवालों में ही
निगल ली जाती है...

स्त्री।