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आयोवा / मंगलेश डबराल

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आयोवा
हे-र्‌योन हाम के लिए

१.
इस शहर का नाम
एक नदी का नाम है
शहर का सन्नाटा नदी की आवाज है
दिन में शहर के चौराहे पुल और पार्क
चुपचाप नदी में उतरते हैं
किताबें कपड़े गृहस्ती का सामान और
हैमबरगर बेचती दूकानें
पानी में स्थिर पड़ी रहती हैं
खिलौनों की एक दूकान
कुछ देर नदी के तल में सो जाती है

शाम को जब रोशनियां जलती हैं
शहर नदी के बाहर आता है
एक खाली जगह दिखती है
पानी में उगा हुआ एक पेड़
उसके नीचे एक अकेली बेंच
जिस पर पत्ते बैठते हैं कुछ देर.

२.
रास्ता लम्बा है चलना आसान नहीं
रात खत्म नहीं होती बारिश थमती नहीं
शोर होता रहता है सन्नाटा टूटता नहीं
रोशनियाँ जली रहती हैं अंधेरा भागता नहीं
रोना आता रहता है हँसी रुकती नहीं
वर्फ गिरती जाती है आग बुझती नहीं.

३.
एक पत्ता पेड़ पर ज़रा-सा अटका रहता है
बादल आसमान में ज़रा-सा अटका रहता है
धुंध चेहरों पर ज़रा-सी अटकी रहती है
नींद रात के किसी कोने में ज़रा-सी अटकी रहती है
भाषा में ज़रा-सी अटकी रहती है कविता.

१९९१