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लगातार ग़रीब / प्रयाग शुक्ल
Mukesh Jain
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लगातार गरीब
घर से निकला
यात्रा पर-
पड़ाव थे कई
महँगाई की मार-
मैं लगातार
होता गया
ग़रीब!