Last modified on 4 फ़रवरी 2010, at 18:34

भर दे जो रसधार दिल के घाव में / रवीन्द्र प्रभात

रवीन्द्र प्रभात (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:34, 4 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> भर दे जो रसधार दिल …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भर दे जो रसधार दिल के घाव में !

फिर वही घूँघरू बंधे इस पाँव में !


द्रौपदी वेबस खडी यह कह रही -

अब न हो शकुनी सफल हर दाव में !


बर्तनों की बात मत अब पूछिए -

आजकल सब व्यस्त हैं टकराव में !


है सफल माझी वही मझदार का -

बूँद एक आने न दे जो नाव में !


बात करता है अमन की जो "प्रभात"

भावना उसकी जुडी अलगाव में !