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कथावाचक / अरुण कमल

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कथा वाचक

हो जो कोई भरे हुँकारी
फिर तो कथा सुनाता जाऊँ
रात-रात भर
कभी न सोऊँ

चाह नहीं कुछ
गाँव नगर में घूम-घूम कर
कथा सुनाता जाऊँ
कहीं पेड़ के नीचे या ओटे पर
विद्यालय में
जहाँ कभी भी जुट जायें दस लोग
वहीं पर चित्रकूट हो-
कहना सब को सब को लाना
बच्चे बूढ़े नारी सभी को
बीच-बीच में अर्थ

         भी थोड़ा कर दूँगा मैं

हाँ हाँ बेटे...शंख बजेगा, आना

हारमोनियम लिये घूमता देस-देस मैं
कहीं अभी तक जम नहीं सका हूँ
नहीं रही पहिले जैसी उत्सुकता मन में
भक्तों के भी
बदला समय भाव भी बदले
एक जून भोजन भी भारी

         भक्तों के घर

उत्तर कांड समाप्त
अचानक होगा कहीं
किसी अज्ञात गाँव में
कभी अचानक स्वर अँटकेगा कथा सुनाते
कहीं बीच से टूटेगी जीवन चौपाई
अर्थ शेष रह जाएगा