उसने ठीक हमारी नाक पर पत्थर मारा
और हम हो गए घायल
क्या सिर्फ़ घायल?
कलेजे पर लोटते हैं साँप
दिलों में घोंपे जाते हैं खंज़र
संगीनों की धड़कनें जब
हो जाती हैं प्रचण्ड।
झोंपड़े के बीच
दूध पीता बचा
वात्सल्य उड़ेलती माँ
और दफ़्तर से लौटते पिता को
निगल जाती है शाम
उदास हो जाती हैं वादियाँ
तब भी
तुम होते हो घायल
सिर्फ़ घायल
हज़ारों वर्षों से होते रहे हो घायल
बोलो-
कब तक होते रहेंगे-
हम घायल