Last modified on 14 फ़रवरी 2010, at 20:03

प्रीति-भेंट / श्रीकांत वर्मा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:03, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतने दिनों के बाद अकस्मात मिले तो आँसुओं ने उसके उसे, मेरे मुझे
भरमा दिया,
आँसू जब थमे तो मैं कुछ और था, वह कुछ और-
वह मेरी आँखों में, मैं उसकी आँखों में
ढूँढ़ रहा था शंका, अविश्वास और याचना से
ठौर!