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बुरा वक़्त / दिनेश डेका

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»  बुरा वक़्त

एक-एक कर ढह जाती हैं मेरे नए घर की दीवारें
किरानी की उम्र भर की कमाई, शिल्पी का कलात्मक घर

खुली हवा का विषदन्त लगने से गिरता है सान्दै का घर
भीतर लखीन्दर का साँप-डसा शरीर
भविष्य के आआख़िरी किले का भी पतन। कहाँ रखूँगा अभी से ही
अनुज का जीवन, अनुज का चिन्तन

जीवन-भर
सतरंगे सपनों के इन्द्रधनुष रचनेवाली
नारी जीवन की पहली सुबह में ही
थकी बेउला पोर-पोर
केले की नाव पर बहती है
साथ लेकर पति का नीला शरीर।


मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार