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जायज-नाजायज / संध्या पेडणेकर

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अपना है तो
जायज़ है
कभी स्वाभिमान है,
कभी
अस्मिता है
कभी और कुछ
सकारात्मक
जिसका पोषण करना
ज़रूरी है
किसी और का हो
तो
ग़ैरज़रूरी है,
नाजायज़ है
बेमतलब है
अकारण है
इसलिए
येन-केन-प्रकारेण
अपनी इज़्ज़त गिरवी रखकर ही सही
उसे कुचलना चाहिए
कहीं उसका अहंकार
अपने अहंकार के आगे
भारी पड़ा तो?
दिखावटी टुच्ची लड़ाई
सच ने जीत ली तो?
नाक कट जाएगी,
स्वाभिमान मिट जाएगा
इसलिए
नाजायज़ अहंकार को कुचलने के लिए
जायज़ अहंकार को बिछ जाना होगा
बेआबरू का सैलाब बह जाने देना होगा

हो सके तो
उसी सैलाब में
उसके अहंकार को
कुचलना होगा
दफ़नाना होग