साँस अब भी चल रही थी
और बची थी देह में गर्मी
इच्छा शक्ति ले रही थी हिलोरें
ऐसे ही हजारों-लाखों लोग जीते हैं यहाँ
जिनकी साँसे चलती है
और देह की गर्मी में बसा करती है इच्छाशक्ति
इस शक्ति के दम पर वे
उठाते हैं बोझ, तोड़ते हैं-
पत्थर-पहाड़ ।
१९ जनवरी, २००२