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बर्फ़ / अरविन्द चतुर्वेद

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मुझसे टकराया मिट्टी का कच्चा घड़ा
और मैं टूट कर बिखर गया
एक हहराती नदी
अचानक मुझे भिगो गई नींद में
आज तक गीले हैं
मेरे कपड़े
मैं कहाँ सुखाने जाऊँ इन्हें

क्या बीती सदी के फ़्रीज में
जमाई हुई बर्फ़ हूँ मैं
जिसे पिघलना है
अब नई सदी की धूप में!