Last modified on 8 मार्च 2010, at 20:19

उलटे होर ज़माने आए / बुल्ले शाह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:19, 8 मार्च 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बुल्ले शाह }} Category:पंजाबी भाषा {{KKCatKavita}} <poem> एकदम उल्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एकदम उल्टा ज़माना आ गया है।
कौए गिद्धों को मारने लगे हैं और चिड़िया बाज़ों को खाएँ।
घोड़ों को चाबुक मारे जा रहे हैं और गधों की गेहूँ की हरी-हरी बालें खिलाई जा रही हैं।
बुला कहता है हुज़ूर(प्रभु) के आदेश को कौन बदल सकता है।
एकदम उल्टा ज़माना आ गया है।


मूल पंजाबी पाठ

उलटे होर ज़माने आए,
काँ लग्गड़ नु मारन लग्घे चिड़ियाँ जुर्रे खाए।
अराकियाँ नु पाई चाबक पौंदी गड्ढे खुद पवाए।।
बुल्ला हुकम हजूरों आया तिस नू कौन हटाए
उलटे होर ज़माने आए।