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आगमन / अशोक वाजपेयी

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दिगम्बर शाखा प्रतीक्षा करती है
कोमल हरी सुगबुगाहट की।
तट की रेत प्रतीक्षा करती है
सब कुछ को भिंगोनेवाले
लहरों के उन्मेष की।
अपनी नीलिमा में आकाश प्रतीक्षा करता है
सूर्य के तपने, चन्द्रमा के शीतल होने की।
अपनी पंखुरियों में फूल प्रतीक्षा करता है
मधुमक्खी के रस चूसने, शहद बनने की।

समय की झुर्रियाँ
दूर कर देता है अनन्त।
देवता एक नई चादर लाते हैं,
घर प्रतीक्षा करता हैं
आगमन की।