Last modified on 3 अप्रैल 2010, at 12:44

बोतलों से जिन्न निकाले जाएँगे

Satpal khayal (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:44, 3 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सतपाल 'ख़याल' |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> बोतलों से ज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

 
बोतलों से जिन्न निकाले जाएँगे
आज फिर मुद्दे उछाले जाएँगे।

वक्त की काई जिन्हें ढकती रही
ताल वो फिर से खँगाले जाएँगे।

इस तरफ मस्जिद गिरी तो उस तरफ़।
राम,मंदिर से निकाले जाएँगे।

मुफ़लिसी में बाप का साया गया
अब से बच्चों के निवाले जाएँगे।

आज संसद में हमारे सब सवाल
गेंद के जैसे उछाले जाएँगे।

तेज़ तूफ़ाँ मे दरख्तों से भला
कैसे ये पत्ते सँभाले जाएँगे।

वो रहे लश्कर अँधेरों के 'ख्याल'
ज़िंदगी से अब उजाले जाएँगे।