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हे लेखक / नवारुण भट्टाचार्य

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कलम को कागज़ पर फेरते हुए
आप दृष्टि को
बड़ा नहीं कर सकते
क्योंकि कोई नहीं कर सकता।

दृश्य के नीचे
जो बारूद और कोयला है
वहाँ एक चिनगारी
जला सकेंगे आप?

दृष्टि तभी बड़ी होगी
लहलहाते
फूल-फूलेंगे धधकती मिट्टी पर
फटी-जली चीथड़े-चीथड़े ज़मीन पर
फूल फूलेंगे।

ज्वालामुखी के मुहाने पर
रखी हुई है एक केतली
वहीं निमंत्रण
है आज मेरा
चाय के लिए।

हे लेखक, प्रबल पराक्रमी क़लमची
आप वहाँ जाएँगे?