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निर्मोही / सुतिन्दर सिंह नूर

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वह जब कहती है कि
बहुत निर्मोही हूँ मैं
उसके होंठ काँपते हैं
शब्द मचलते हैं
अवचेतन तक लहराते
मूक हो जाते हैं
आँखों के रास्ते कहते हैं
मोह तो सीमा है
क़ैद है
मुहब्बत असीम है
मुक्त है
उसके कान कपोलों तक
लाल हो उठते हैं
अंग-अंग बोलने लगता है
मैं कहता हूँ
तुम बस यूँ ही मिला करो
निर्मोही बनकर


मूल पंजाबी भाषा से अनुवाद : शांता ग्रोवर