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भवानीप्रसाद मिश्र
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भवानीप्रसाद मिश्र की कविताएं
दरिंदा
जाहिल के बाने
चार कौए उर्फ चार हौए
आराम से भाई ज़िन्दगी
बेदर्द
सन्नाटा
अब के
तुमने जो दिया है
कहीं नहीं बचे
झुर्रियों से भरता हुआ
वस्तुतः
नहीं बनेगा
मैं तैयार नहीं था
बुनी हुई रस्सी
वाणी की दीनता