झर गई
सुबह की अंजुरी से
गुनगुनी धूप
ढल चला
दोपहर की धूप में
कोमल इस्पात
रुक गई है फिर
धानी नदी की
बहती आवाज़
और टंग गई
आकाश के खेमे पर
एक कुतिया की चीख़ :
झर गई
सुबह की अंजुरी से
गुनगुनी धूप
ढल चला
दोपहर की धूप में
कोमल इस्पात
रुक गई है फिर
धानी नदी की
बहती आवाज़
और टंग गई
आकाश के खेमे पर
एक कुतिया की चीख़ :