Last modified on 20 अप्रैल 2010, at 23:22

बागी / रामधारी सिंह "दिनकर"

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:22, 20 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=रेणुका / रामधारी सि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

(बोरस्टल जेल के शहीद यतीन्द्रनाथ दास की मृत्यु पर)

निर्मम नाता तोड़ जगत का अमरपुरी की ओर चले,
बन्धन-मुक्ति न हुई, जननि की गोद मधुरतम छोड़ चले।
जलता नन्दन-वन पुकारता, मधुप! कहाँ मुँह मोड़ चले?
बिलख रही यशुदा, माधव! क्यों मुरली मंजु मरोड़ चले?
उबल रहे सब सखा, नाश की उद्धत एक हिलोर चले;
पछताते हैं वधिक, पाप का घड़ा हमारा फोड़ चले।
माँ रोती, बहनें कराहतीं, घर-घर व्याकुलता जागी,
उपल-सरीखे पिघल-पिघल तुम किधर चले मेरे बागी?

रचनाकाल १९२९