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ज़मीन-2 / एकांत श्रीवास्तव

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ज़मीन
बिक जाने के बाद भी
पिता के सपनों में
बिछी रही रात भर

वह जानना चाहती थी
हल के फाल का स्‍वाद
चीन्‍हना चाहती थी
धॅंवरे बैलों के खुर

वह चाहती थी
कि उसके सीने में लहलहाएँ
पिता की बोयी फसलें

एक अटूट रिश्‍ते की तरह
कभी नहीं टूटना चाहती थी ज़मीन
बिक जाने के बाद भी।