चेतावनी / सत्यनारायण ‘कविरत्न’

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:26, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सत्यनारायण ’कविरत्न’ |संग्रह= }} {{KKCatGeet}} <Poem> उठौ उठौ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उठौ उठौ हो भारत सोइए ना, सोइए ना मुख जोइए ना।
बीति गई जो ताहि बिसारौ, व्यर्थ समय निज खोइए ना।
देखहु उठि परदेशनि-उन्नति, आलस बीजनि बोइए ना।
कटि कसि करहु देश-उद्धारहि, भौज मनोजन भोइए ना।
पश्चिमीय विधा जुगुनू की, देखि प्रभा प्रिय मोहिए ना।
लखि निज ओर चेत करि चित में, साहसहीन जु होइए ना।
नैन खोलि प्राण पियारै, बाट रसातल टोहिए ना।
घाती घात लगैं चहु ओरन, झूठ और साँच समोइए ना।
सत्यनारायण बोझिल कामरि, जाकों और भिजोइए ना।

रचनाकाल : 1905

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.