Last modified on 1 मई 2010, at 00:38

सूखा / एकांत श्रीवास्तव

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:38, 1 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इस तरह मेला घूमना
हुआ इस बार
न बच्‍चे के लिए मिठाई
न घरवाली के लिए टिकुली-चूड़ी
न नाच न सर्कस

इस बार जेबों में
सिर्फ़ हाथ रहे
उसका खालीपन भरते

इस बार मेले में
पहुँचने की ललक से पहले पहुँच गई
लौटने की थकान

एक खाली कटोरे के सन्‍नाटे में
डूबती रही मेले की गूँज

सिर्फ़ सूखा टहलता रहा
इस बार मेले में।