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अदृश्य / भारत भूषण अग्रवाल

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ऐसा नहीं है कि मैं जानता न होऊँ
उस दिन
लंच को जाते हुए
रेस्तराँ की आठवीं सीढ़ी पर
तुमने अचानक ठिठककर
मेरी ओर क्यों देखा था
उन आँखों से
जिनमें मेरा इतिहास अंकित है।

है अगर कुछ
तो सिर्फ़ यही
कि तुमने
मेरी वह बाँह नहीं देखी
जिसने तुम्हें थामा था।

रचनाकाल : 19 मार्च 1965