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मैं तो नागरिक / नवीन सागर

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मरने से डरता हूँ एक दिन
तो बड़ी हिंसा हो जाती है दूर-दूर

पर मैं तो नागरिक
नींद के पाताल में चलता
बच-बच के घर की तरफ़
गुण्‍डों को नमस्‍कार करता।

आता है वह अक्‍सर कहने को
मरने से डरता हूँ एक दिन
तो बड़ी हिंसा हो जाती है दूर-दूर।

वह दोस्‍त मेरा
कहता है डर अकेले का घर है
चलो बहुत लोगों में
सब कुछ हो जाएगा
आने को हैं अपने बच्‍चे इस दुनिया में
समतल मैदान करो खेलेंगे।
पर मैं तो नागरिक
दोस्‍त को नुक्‍कड़ तक छोड़ता
लौटता
गुण्‍डों को नमस्‍कार करता।