Last modified on 3 मई 2010, at 12:58

मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 16 / नवीन सागर

Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:58, 3 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्‍बी रात / नवीन सागर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भीतर आकाश
भीतर आकाश में तारे नहीं हैं
आकाश में
तारे देखने के लिए भीतर गया
लौटा नहीं

बाहर आकाश नहीं
बाहर तारे
जिनका मुकुट लगाए रात
हर तरफ मरी पड़ी है.