पतझर / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:08, 4 मई 2010 का अवतरण ("पतझर / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झरो, झरो, झरो,
जंगम जग प्रांगण में,
जीवन संघर्षण में
नव युग परिवर्तन में
मन के पीले पत्तो!
झरो, झरो, झरो,

सन सन शिशिर समीरण
देता क्रांति निमंत्रण!
यह जीवन विस्मृति क्षण,--
जीर्ण जगत के पत्तो!
टरो, टरो, टरो!

कँप कर, उड़ कर, गिर गर,
दब कर, पिस कर, चर मर,
मिट्टी में मिल निर्भर,
अमर बीज के पत्तो!
मरो! मरो! मरो!

तुम पतझर, तुम मधु--जय!
पीले दल, नव किसलय,
तुम्हीं सृजन, वर्धन, लय,
आवागमनी पत्तो!
सरो, सरो, सरो!

जाने से लगता भय?
जग में रहना सुखमय?
फिर आओगे निश्चय।
निज चिरत्व से पत्तो!
डरो, डरो, डरो!

जन्म मरण से होकर,
जन्म मरण को खोकर,
स्वप्नों में जग सोकर,
मधु पतझर के पत्तो!
तरो, तरो, तरो!

रचनाकाल: फ़रवरी’ ४०

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.