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बिल्लियाँ / नवीन सागर

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दूध का ढक्‍कन हटने की आवाज़ नहीं होने देतीं
कभी लगता है किसी और आवाज़ की ओट में
ढक्‍कन हटाती हैं चतुर! कभी ऐसे कि पूरा घर
जाग जाए उन्‍हें भागना पड़ता है! कभी कोने में
फँस जाती हैं तो उनकी आँखों में देखने से ऐसे में
डर लगता है उन्‍हें जल्‍दी से निकल जाने दिया जाता है।

उनके घर नहीं होते वे किसी इलाके के तमाम घरों में
रहती हैं वे बहुत कम मारी जाती हैं जबकि कुत्‍ते बहुत
मरते हैं वे लावारिस पड़ी नहीं मिलती। उनमें हमला
करने और बचने की तैयारी दिखती है। वे जब रोती हैं
तो घरों में स्‍यापा छा जाता है। कईं बार देर तक रोती हैं
कईं बार उनकी आवाज़ बहुत पास से आती है।

वे पली हुई कुछ कम बिल्‍ली-सी दिखती हैं
उनका हमारा साथ कितना पुराना है। पर वे रास्‍ता
काटना नहीं छोड़ती!

कभी लगता है वे कम हो रही हैं
तभी कोई खिड़की से झाँकती है कोई पूँछ उठाकर
म्‍याऊँ करती है
कोई रास्‍ता काटती निकल जाती है