Last modified on 11 मई 2010, at 13:54

बाथरूम / गोविन्द माथुर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:54, 11 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोविन्द माथुर }} {{KKCatKavita‎}} <poem> उन्होने बनवाया एक आली…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

{KKGlobal}}

उन्होने बनवाया एक आलीशान मकान
लाखों में खरीदी थी जमीन
करोड़ों में कमाया था काला धन
राजधानी से आया वास्तुकार
दूर-दराज से आये पत्थर
गलियारे में लगा था सफ़ेद संगमरमर

मकान में सबसे शानदार
और देखने लायक था
उनका बाथरूम
जगमगाता उजला
चाँदनी से नहाया फर्श
जिस पर ठिठक जाएँ पैर

कहते है काला धन
खपाया जाता है मकान बनवाने में
या विवाह समारोह के शामियाने में

वे हर बड़े आदमी की तरह
अक्सर रहते थे बाथरूम में
एक दिन समाचार मिला
एक दम चित गिरे थे
फिर नहीं उठ पाए बाथरूम से

बचपन में कहानियों में पढ़ा था
अक्सर जादूगर की जान किसी
पुराने किले में बंद
तोते में हुआ करती थी
कहते है उनकी जान बाथरूम में थी।