काशी अविनाशी का अदना निवासी एक,
कृष्णदेव नाम मगर रंग नहीं काला है,
सेवक सरस्वती का,
दास दयानंद का हूँ,
टीचरी में निकला दिमाग का दिवाला है.
काव्य लिखता हूँ नहीं हँसने की चीज निरी
रचना में व्यंग
औ विनोद का मसाला है;
पावन प्रसाद 'दीन' जी का
मिला 'बेढब' है,
सूर हूँ न तुलसी पंथ मेरा निराला है.
नोट: 'दीन'जी = लाला भगवान 'दीन'