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कविके भावों की रानी (पैरोडी) / बेढब बनारसी

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मैं कवि के भावों की रानी
मेरे पायल की छूम छनन
का देती कवि का मन उन्मन
जब आती मैं सम्मुख बनठन
कवि के मुख को मिलती बाणी
मैं कवि के भावों की रानी
रससे भर देती हूँ आनन
जैसे कानों में खूँट सघन
जब ले हाथों में दलबेसन
आती चौके से दीवानी
मैं कवि के भावों की रानी
जब मैं उनके सम्मुख आकर
हूँ डांट बताती गर्जन कर
वह लिख लेते कुछ क़ागज पर
जगती ने वह कविता मानी
मैं कवि के भावों की रानी
कवि के दिल की मैं हूँ सरजन
शासन करती जैसे करजन
बच्चे मेरे आधे दरजन
जिनकी करते वह निगरानी
मैं कवि के भावों की रानी
पूरा होता न बजट मेरा
तब सहलाते वह लट मेरा
कहना करते झटपट मेरा
देते न मगर कौड़ी कानी
मैं कवि के भावों की रानी
वह बैठे बैठे रजनी भर
भन भन करते जैसे मच्छर
सुन सुन कर कानों में जो स्वर
निद्रा की मर जाती नानी
मैं कवि के भावों की रानी
मैं देख उन्हें होती विस्मित
जब उठते वह प्रातः अलसित
मुख पर ऐसी रंगत चित्रित
जैसे हुक्के का हो पानी
मैं कवि के भावों की रानी
मैं गान्धीजी की आशा हूँ
काकाजी की अभिलाषा हूँ
मैं हिन्दुस्तानी भाषा हूँ
अभिनव कवि जिसके अभिमानी
मैं कवि के भावों की रानी
कवि को लगती हूँ बहुत भली
जैसे बच्चों को मूंगफली
बंगाली को जैसे मछली
जैसे बरघे को हो सानी
मैं कवि के भावों की रानी
आँखोंकी रायफल दो नाली
उनके सम्मुख करके आली
करवा देती पाकेट खाली
जैसे सीमा पर अफगानी
मैं कवि के भावों की रानी
पश्चिम में छाई है लाली
पशु बन से फिर आये आली
उठ कवि करदे कमरा खाली
की बहुत अभीतक मनमानी
मैं कवि के भावों की रानी
(कविवर गुलाब खंडेलवाल की कविता --'मैं कवि के भावों की रानी' की पैरोडी)