Last modified on 13 मई 2010, at 20:29

मुकेश मानस /भूमिका में कविता

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:29, 13 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

{{KKGlobal}



भूमिका में कविता

जिन बच्चों के पास
चरखड़ी और पतंग नहीं थी
उन बच्चों ने खुद को
चरखड़ी बना लिया
और खुद को ही पतंग

वो बच्चे अभी तक
खुशियों के अम्बर को
छूने की कोशिश में लगे हैं

बार-बार गिरते
बार-बार उठते
उन्हीं बच्चों में
शामिल है ये कवि
और उसकी कविता
2001